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राम कथा - अभियान

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :178
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 529
आईएसबीएन :81-216-0763-9

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राम कथा पर आधारित उपन्यास, छठा सोपान


सात

 

अभी पूरी तरह दिन का उजाला भी नहीं हुआ था।

अपने शयन-कक्ष से बाहर निकलते ही विभीषण को लंका की सेना के साथ अशोक-वाटिका में हो रहे हनुमान के संघर्ष की सूचना मिली।

विभीषण समझ नहीं पाए कि क्षण-भर में ही उनके मन में क्या-क्या और कितना घटित हो गया।...अशोक-वाटिका में बंदिनी सीता के पास हनुमान नाम का कोई व्यक्ति पहुंचा है और  उसने स्वयं को राम का दूत बताकर रात लक्ष्मण तथा सुग्रीव की जयजयकार की है...

विभीषण को लगा, सहसा जैसे मन उत्फुल्लित हो उठा है। राम, लक्ष्मण तथा सुग्रीव की एक साथ जयजयकार करने का अर्थ क्या हुआ? क्या राम-सुग्रीव का पक्ष एक ही है? राम वानरों से मिल गए हैं? वानर उनके सहायक हो गए हैं? पर बाली? बाली की जयजयकार हनुमान क्यों नहीं कर रहा है? बाली के होते हुए सुग्रीव की जयजयकार का अर्थ?

सहसा विभीषण के मन में एक विचार कौंधा, कहीं सुग्रीव ने राम की सहायता से बाली का वध तो नहीं कर दिया? ऐसा ही हुआ होगा। राम जैसा शस्त्रधारी सुग्रीव का सहायक हो जाए, तो बाली सम्पूर्ण मल्लता के होते हुए भी क्या करेगा? सम्भव है, ऐसा ही हुआ हो! राम और सुग्रीव दोनों पीड़ित थे, दोनों मिल गए होंगे। नहीं तो अपमानित-निष्कासित-प्रताड़ित सुग्रीव की जयजयकार का क्या अर्थ? कितना समझदार है यह हनुमान, जिसने अपनी एक जयजयकार से ही अनेक परिस्थितियां संप्रेषित कर दीं।

किष्किंधा में इतना कुछ घटित हो गया और विभीषण को तनिक-सा आभास भी नहीं मिला। विभीषण को सूचनाएं नहीं मिलीं, क्योंकि कदाचित् लंका में किसी को भी इन घटनाओं की  सूचना नहीं है...कैसा है रावण का गुप्तचर विभाग...सारे अधिकारी मदिरा पीकर धुत पड़े रहते हैं...कहां से आएंगी सूचनाएं...शूर्पणखा भी जब जनस्थान से रोती हुई लौटी थी तो उसने रावण के मुख पर ही चीख-चीखकर कहा था कि वह मदिरा पीकर बेसुध पड़ा रहता है और राज्य के भीतर-बाहर होने वाली घटनाओं की उसे कोई सूचना नहीं होती। यही प्रमाद किसी दिन इस साम्राज्य को ले डूबेगा...इतना विकसित, उन्नत और समर्थ राष्ट्र...किन्तु अपने प्रमाद में आंखें बंद किए बैठा है। विलास ने इस साम्राज्य का विवेक समाप्त कर दिया है, बस उन्माद ही उन्माद रह गया है...

राम का दूत सीता तक आ पहुंचा है; अर्थात् उसे ज्ञात हो गया है कि सीता कहां हैं...उसने सीता से कुछ वार्तालाप भी किया है। उसने सीता को राम का कोई संदेश दिया होगा।...क्या राम ने सीता को मुक्त कराने की कोई योजना बनाई है, और उसकी सूचना सीता तक पहुंचाई गई है? या हनुमान ने सीता को सांत्वना मात्र ही दी है...ऐसी स्थिति में सांत्वना भी क्या हो सकती है?...विभीषण को यह सब जानकर करना भी क्या है? उन्हें तो इतने से ही संतुष्ट हो जाना चाहिए कि अब राम न सीता के बंदी के स्थान से अनभिज्ञ हैं और न वे उन्हें मुक्त कराने की ओर से निष्किय हैं...सीता की मुक्ति की संभावनाएं सर्वथा समाप्त नहीं हो गई हैं। यदि इतने ही सक्रिय, उद्यमी तथा साधन-सम्पन्न व्यक्ति हैं तो वे अवश्य ही सीता को मुक्त कराकर ही दम लेंगे। उनकी क्षमताओं में विभीषण को अब कोई संदेह नहीं था। सुग्रीव के साथ मिलकर हनुमान को यहां भेजना...कदाचित् राम के पुरुषार्थ के कारण ही विभीषण अपने अपराध बोध से मुक्त हो सकेंगे।...वे देख रहे हैं कि उनकी आंखों के सम्मुख अनर्थ हो रहा है और वे प्रभावशाली ढंग से उसका विरोध भी नहीं कर पा रहे...यह किसी भी संवेदनशील, भावप्रवण तथा न्यायप्रिय व्यक्ति को अपराध बोध से दंशित करने के लिए पर्याप्त नहीं है  क्या?...

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छः
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस

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